Matruvatsalya Upanishad (Hindi)

श्रद्धावानों के फलस्वरूप, उनके जीवन को उचित दिशा प्रदान करने की तीव्र उत्कंठा के फलस्वरूप सदगुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने हमें आदिमाता की प्रेमकॄपा का आश्वासन दिया। मां चण्डिका की क्षमा, रक्षण अर्थात आधार, वे इस ग्रंथ के माध्याम से हम तक पहुंचा रहे हैं। श्रद्धावानों के मन मे उठनेवाले सभी प्रश्नों को, भय को दूर करके भक्ती और सामर्थ्य को दृढ करनेवाला यह सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है। ऐसा हितकारक बदलाव लानेवाला यह ग्रंथ सिर्फ दिशादर्शक ही नहीं है बल्कि, चण्डिकाकुल की कृपा के फलस्वरूप, इस दिशा में प्रवास करनेवालों को ताकत भी प्रदान करता है। मां चण्डिका की ओर ले जानेवाला मार्ग सदैव खुला रहता है, द्वार खुला रहता है इसका आभास करवानेवाला यह ग्रंथ हमारे अंदर मे अनेको बंद दरवाजो को आसानी से खोल देता है, हमारे मन की अनेक बाधाओं की आसानी से दूर करता है और इस मां की कृपा के खुले मार्ग पर ले आता है। जब ऐसा होता है तब ही मां के नजदीक ले जानेवाले खुले द्वार का आभास होता है और यह कार्य यह ग्रंथ अर्थात सदगुरु की उत्कंठा के शब्द निश्चित रुप से संम्पन्न करता है।


Matruvatsalya Upanishad (Marathi)

श्रद्धावानांच्या प्रेमापोटी, त्यांच्या जीवनाला उचित दिशा मिळावी ह्या कळकळीपोटी सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापूंनी आपल्याला दिलेले आदिमातेच्या प्रेमकृपेचे आश्वासन. आई चण्डिकेची क्षमा, रक्षण आणि अर्थातच आधार ह्या ग‘ंथामधून आपल्यापर्यंत ते पोहोचवतात. श्रद्धावानाच्या मनातील सर्व प्रश्‍न, भय दूर करून भक्ती आणि सामर्थ्य दृढ करणारा हा सर्वश्रेष्ठ ग‘ंथ आहे. हा हितकारक बदल घडवणारा हा ग‘ंथ केवळ दिशादर्शकच नाही तर चण्डिकाकुलाच्या प्रेमामुळे ह्या दिशेने प्रवास करण्याची ताकदही देतो. आई चण्डिकेकडे नेणारा मार्ग सदैव खुला असतो, द्वार उघडे असते ही जाणीव करून देणारा हा ग‘ंथ आपल्या आतमधली अनेक बंद द्वारे अलगद उघडतो, आपल्या आतमधील अनेक अडथळे अलगद दूर करतो आणि ह्या आईच्या कृपेच्या मोकळ्या मार्गावर आणतो. असे जेव्हा घडते, तेव्हाच आईच्या जवळ नेणार्‍याखुल्या द्वाराची जाणीव होते. आणि हे कार्य हा ग‘ंथ, म्हणजेच सद्गुरुंचा कळकळीचा शब्द नक्कीच साध्य करतो.


Matruvatsalyavindanam (Hindi)

यह परमपावन कार्य, जैसे इसका नाम दर्शाता है, माँ चंडिका के वात्सल्य का प्रत्यक्षीकरण है। सगुरु श्री अनिरुद्ध रचित यह कार्य भक्तों को केवल महिषासुरमर्दिनी माता चंडिका के आदर्श, कार्य और भूमिका से ही जोड़ने के लिए नहीं है, बल्कि उसके वात्सल्य से और उसकी हमारी संरक्षा के प्रति तत्परता से हमें अवगत कराना है।
वे चाहते हैं कि हम माता के प्रेम को जानें और उस शक्ति को पहचाने – वह शक्ति जो दुष्टता या बुराई से लड़ने की है, वह शक्ति जो नैतिक गुण और भक्ति के परिणामों से निश्चल आनंद की प्राप्ति कराती है। वह भले ही उग्र दिखती हो, वही सच्ची भक्त की सुरक्षा करती है और दुष्टों का नाश करती है। उस ने अपने उद्देश्य के मुताबिक – सच्चाई, पवित्रता, प्रेम और आनंद के नियमों की सुरक्षा हेतु यह भूमिका अपनाई है और वह इसकी प्राप्ति करती ही है।
गायत्री माता, महिषासुरमर्दिनी चंडिका माता और अनसूया माता एक ही है। विभिन्न स्तर के कार्यों के अनुसार माता रूप धारण करती है। जैसा कि सद्गुरु श्री अनिरुद्ध कहते हैं, यह कार्य माता की कीर्तियों का गुणसंकीर्तन है। यह एक ‘ज्ञान-गंगा’ है, और ‘भक्ति-भागीरथी’ है। यह कार्य ज्ञान एवं भक्ति के पथ पर चलकर भगवंत या यहाँ पर माता चंडिका के बोध के प्रति संतोष प्रदान करता है।
यह चिरकाल तक मार्गदर्शन करनेवाला यह ग्रन्थ सद्गुरु श्री अनिरुद्ध जी द्वारा लिखे गए उन के अन्य कार्यों की तरह भक्तों को प्रेम और आधार देता है।


Purusharthaganga and Madhufalavatika Pustika

This combination contains below books

  • Purusharthaganga Part – 1
  • Purusharthaganga Part – 2
  • Madhufalavatika

Shreemad Pursharth Granthraj - Aanandsadhana Economy Edition (Marathi)

‘आनंदसाधना’ म्हणजे मर्यादामार्गावर परमेश्‍वरावर प्रेम करत वाटचाल करत असताना आनंद प्राप्त करून घेण्याचे विविध उपाय. ‘साधना’ म्हणजे खडतर जीवनपद्धती नसून ‘साधना’ म्हणजे उचित ध्येयाच्या दिशेने केलेले पुरुषार्थी प्रयास आणि ही अशी साधना नेहमीच सद्गुरुकृपेशी जोडणारी म्हणजेच सद्गुरुंच्या सोबत, त्यांच्या प्रेमासोबत जोडणारी – जीवनामध्ये सत्यप्रवेश घडणे म्हणजेच जीवनाचा प्रेमप्रवास आणि जीवनामध्ये आनंदसाधना.
‘पूजन’, ‘व‘त’, ‘उपासना’, ‘तपश्‍चर्या’ हे सर्व भगवंताच्या अधिकाधिक जवळ नेणारेच असतात. ह्या खंडामध्ये सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापू सर्वसामान्यांना ह्या संकल्पनांचा खरा अर्थ समजावून सांगतात. शिवाय ‘पुरुषार्थगंगा’ ह्या विभागामध्ये सद्गुरु-परमत्म्याकडून म्हणजेच सर्वोच्च स्थानाकडून आपल्याकडे आलेला पवित्र व मंगल प्रेमगंगेचा असा प्रवाह, जो रोजच्या जीवनामध्ये आपल्याला सामर्थ्य आणि आनंदाची प्राप्ती तर करून देतोच शिवाय मर्यादामार्गावर दृढ करून एका बाजूने सद्गुरुंबरोबर जोडलेले ठेवतो व दुसर्‍या बाजूने कुटुंब, समाज, ह्या संस्थांचे घटक म्हणूनही आपला विकास घडवून आणतो. ह्या प्रवाहाच्या तीर्थाचे सेवनम्हणूनच सर्वार्थाने हितकारी!
तेव्हा ‘आनंदसाधना’ म्हणजे प्रेमप्रवास करत असलेल्या श्रद्धावानांसाठी आनंदाची साधना व हेच सत्य.


Shreeramrasayan (English)

This work, Shree Ramrasayan, is the essence of the life story of Shree Prabhu Ramachandra from his birth till Ramrajya was established in Ayodhya. The pictures given in it correspond respectively to various episodes in this life story. Ravan symbolises the ill-fate and vicious ego, which brings fear into human life. Sadguru Aniruddha says, “Ravan, who represents ill-fate, steals Janaki and takes her away from Ram. Janaki represents peace and contentment. However, it is Ram who brings about the end of Ravan. The ego, as in the ‘I’, is Ravan’s life force, and the six foes, viz., desire, fury, lure, etc., form the fundamental substance of his mind. Vile inclinations and ill-fate that trouble me are certainly destroyed. But when? When I become a Vanarsainik of Ram.


Shreeramrasayan (Hindi)

‘राम्रसायन’ सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापूजी रचित भगवन श्रीराम की जीवणी है मगर यह केवल अनुवाद नहीं है। ‘राम्रसायन’ भगवान श्रीराम की जीवनगाथा जरुर है, परन्तु कुछ हद तक यह घटनाएं हर युग में और सभी मानवों की जिंदगी में घटती हैं। हरएक की भूमिका – चाहे वे श्रीराम के सद्गुण हों या रावण की चरित्रहीनता हो, वे हर समय हमारे जीवन में घटते हैं। इन बातों को ‘प्रेमप्रवास’ (श्रीमाद्पुरुशार्थ ग्रंथराज का दूसरा भाग) में समझाया गया है। पाठक इन बातों को अपने जीवन से जोड़कर इन से निरंतर मार्गदर्शन पाता है। यह केवल अपनी पत्नी सीता को दुष्ट रावण के चुंगल से छुड़ाने की बात नहीं है। हम भक्तों के लिए मानो भगवान की यह लड़ाई भक्ति को प्रारब्ध के चुंगल से छुड़ाकर वहीँ ले जाने के लिए है जहाँ से वह आई है – भगवान के पास। भगवान एक सामान्य इन्सान की तरह जीवन व्यतीत करते हुए, उपलब्ध भौतिक साधनों की सहायता से और कठिन परिश्रम करते हुए पवित्र मार्ग पर चलकर बुराई पर विजय हासिल करते हैं। यह हमारी प्रेरणा के लिए है। यह पवित्र प्रेम, दृढ विश्वास और हनुमानजी के समर्पण के साथ साथ विपरीत परिस्थितियों में होते हुए बिभीषण के अटूट विश्वास के बारे में है। इस की वजह से यह एक ‘रसायन’ है – यह निरंतर पुनरुद्धार एवं वास्तविक शक्ति का जरिया है। एक ओर, यह हमें वानर सैनिक बनने की प्रेरणा देता है, जो भगवान और राजा श्रीराम के भक्त थे, तो दूसरी ओर सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापूजी कहते हैं कि यह रचना दत्तगुरु के चरणों में अर्पण रामगुणसंकीर्तन की पुष्पांजलि है।
और यही तो इस रचना की सुन्दरता है। इस रचना में चित्र विस्तृत और गूढ़ हैं जो हमें उन घटनाओं की गहराई तक ले जाते हैं मानो वे घटनाएँ हमारे समक्ष, हमारी जिंदगी में घट रही हैं।


Shreeramrasayan (Marathi)

हा ग्रंथ म्हणजे श्रीप्रभूरामचंद्रांच्या जन्मापासून अयोध्येत रामराज्य स्थापन होईपर्यंतच्या रामकथेचे जीवनसार आहे. यातील चित्रेसुद्धा त्या त्या कथेच्या अनुषंगाने आहेत. रावण हा प्रतीक आहे द्रुष्प्रारब्धाचा व तामसी अहंकाराचा, ज्यामुळे मनुष्याच्या जीवनामध्ये भय उत्पन्न होते. सद्‌गुरु श्रीअनिरुद्ध सांगतात, ’दुष्प्रारब्धरूपी रावण आपल्या जीवनातून शांतीतृप्तीरूपी जानकीला पुरुषार्थरूपी रामापासून वेगळे करतो. अहंकार हाच ज्याचा प्राण आहे आणि काम, क्रोध, मोहासारखे षड्‌रिपू अशी ज्याच्या मनाची मूलद्रव्यं आहेत अशा रावणाचा वध रामाकडूनच होतो. मानवाला सतावणार्‍या अशा दुष्प्रवृत्ती व दुष्प्रारब्धाचा नाश होतोच. पण केव्हा? जेव्हा आपण रामाचे वानर बनतो तेव्हा.’